स्थानीय लोग सीमांत के विकास के लिए बेहद जरूरी बता रहे क्षेत्र में विवि होना
कुमाऊं जनसन्देश डाॅट काॅम
पिथौरागढ़/हल्द्वानी। लम्बे समय से चली आ रही मांग के बद भी पिथौरागढ़ में विश्वविद्यालय की स्थापना नहीं हो सकी है। व्यापक आंदोलन चलने के बाद सरकार की ओर से अनदेखी होने से जनपद के दूरस्थ और सीमा से सटे जौलजीबी इलाके में भी रोष है।
जनपद मुख्यालय से 68 किमी की दूरी पर, काली और गोरी नदी के संगम पर स्थित छोटे से जौलजीबी कस्बे के वासियों के लिए सबसे नजदीकी महाविद्यालय, 12 किमी की दूरी पर बलुवाकोट में स्थित है। सीमित विषयों की उपलब्धता और संसाधनों के अभाव में, अधिकांश राजकीय महाविद्यालयों की तरह बलुवाकोट में भी उच्च शिक्षा की हालत खस्ताहाल है। गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा ग्रहण करना आज भी जौलजीबी वासियों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। यही कारण था कि पिछले वर्ष चले विश्वविद्यालय अभियान के दौरान जौलजीबी में विवि स्थापना की इस मुहिम को हर तबके का व्यापक समर्थन मिला था। पिथौरागढ़ में विवि स्थापना को लेकर एक बार फिर से मुखर होते हुए जौलजीबी के स्थानीय नागरिकों-व्यापारियों ने सरकार से सीमांत की अनदेखी न करने की अपील करते हुए जनपद में विश्वविद्यालय स्थापना की मांग को समर्थन दिया है।
जनसंपर्क यात्रा को मिला था व्यापक समर्थन: धर्मशक्तू


व्यापार मंडल जौलजीबी के अध्यक्ष धीरेंद्र धर्मशक्तू बताते हैं कि पिछले वर्ष जब पिथौरागढ़ जनपद में विश्वविद्यालय स्थापना के लिए जनसम्पर्क यात्रा जौलजीबी पहुँची तो स्थानीय नागरिकों-व्यापारियों की ओर से भारी समर्थन विश्वविद्यालय की इस माँग को मिला था. सार्थक बातचीत के बाद स्थानीय बाजार और ग्रामीण क्षेत्र में चलाये गए हस्ताक्षर अभियान में सभी ने इसे एक जरूरी माँग बताते हुए एकजुटता दिखायी थी. जौलजीबी जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों के लिहाज से विश्वविद्यालय की स्थापना सीमांत जनपद में होना बहुत जरूरी है. ना केवल उच्च शिक्षा का स्तर सुधरेगा बल्कि उच्च शिक्षा का प्रसार भी होता. हमारे क्षेत्र के आसपास अनुसूचित जनजातियां की बसासत भी है, विवि बनने से उनको भी उच्च शिक्षा ग्रहण करने के अधिक अवसर मिलते. हमारे स्थानीय मेलों, संस्कृति, जड़ीबूटियों, वन उत्पादों पर शोध भी सम्भव हो पाते।
सीमांत क्षेत्र की बेटियों को भी मिल सकेगी बेहतर शिक्षा: पुष्पा

दूतीबगड़ ग्रामसभा की ग्राम प्रधान पुष्पा देवी का कहना है कि जौलजीबी जैसे दूरस्थ क्षेत्रों की अधिकतर लड़कियाँ सामाजिक आर्थिक कारणों से उच्च शिक्षा ग्रहण करने जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ नहीं आ पाती हैं। अगर पिथौरागढ़ में विश्वविद्यालय खुलता तो सीमांत के डिग्री कॉलेजों की स्थिति भी सुधरती और हमारी लड़कियाँ भी बलुआकोट में ही विज्ञान विषयों की शिक्षा ग्रहण कर पाती। सरकार को सीमान्त क्षेत्र की बेटियों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के बारे में भी सोचना चाहिए।
आपदा प्रबंधन शोध कार्यो को मिलता बढ़ावा: ओझा

सामाजिक कार्यकर्ता और बलुआकोट महाविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष हरीश ओझा कहते हैं कि पिथौरागढ़ में विश्वविद्यालय खुलता तो सीमांत क्षेत्र में हर साल आने वाली आपदाओं पर आपदा प्रबंधन विषय के अंतर्गत शोध किया जाता। सीमांत में बागवानी, जड़ी-बूटी और अन्य स्थानीय समस्याओं पर शोध होता व उनका समाधान प्रस्तुत किया जाता। सीमांत में नेटवर्किंग न होने और भयानक आपदा के समय में भी कुमाऊँ विश्वविद्यालय द्वारा ऑनलाइन असाइनमेंट जमा किए जा रहे हैं, अगर सीमांत का अपना विश्वविद्यालय होता तो यहां के विषम भौगोलिक परिस्थियों के कारण छात्रों को आने वाली समस्याओं के प्रति संवेदनशील होता।
महाविद्यालय के संसाधनों में होता इजाफा: पाल

सामाजिक कार्यकर्ता उपेंद्र पाल कहते हैं कि जनपद में विश्वविद्यालय होने से हमारे स्थानीय महाविद्यालय की हालत भी बेहतर होती। कुछ अधिक संसाधन आवंटित होते और हमारे बच्चों को यहीं पढ़ने का मौका मिलता। पिथौरागढ़ में ही विवि मुख्यालय होने से बहुत से कागजी काम के लिए लम्बी दौड़ नैनीताल-अल्मोड़ा के लिए नहीं लगानी पड़ती और पिथौरागढ़ में ही काम हो जाता। नेपाल-चीन से लगी इन सीमावर्ती जगहों में उच्च शिक्षा मजबूत होने से क्षेत्र का विकास होता और सीमाएं अधिक मजबूत होती।
