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गर्मी के दिनों (पांच जून ) लगाए पौधों के जीवित रहने की संभावना रहती है बहुत कम
आशुतोष पंत
हल्द्वानी। पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन हमारे देश में भी पौधरोपण करने की होड़ सी लग जाती है। पर्यावरण के प्रति सजग रहना बहुत अच्छी बात है, पर पर्यावरण की चिंता साल भर में एक दो दिन ही नहीं होनी चाहिये। ये तो हमेशा ही हमारे दिलों दिमाग में और हमारे कार्यों में रहनी चाहिये। एक पक्ष यह भी है कि आम आदमी जो अपनी जीविका के लिये परेशान रहता है उसकी एक सीमा है। वह साल में एक दो दिन भी पर्यावरण के लिये कुछ कर दे तो काफी है और वह सही दिन हरेला पर्व का दिन है।
5 जून को पूरे देश में जगह जगह एनजीओ, सरकारी संस्थाएं और उत्साही लोग पौधरोपण करते हैं। इस दिन करोड़ों पौधे लगाए जाते हैं। यदि सच्चाई के साथ सर्वे कराया जाय तो साबित हो जाएगा कि इन पौधों में से 2 या 3 प्रतिशत भी नहीं बच पाते हैं। जबकि हरेला पर्व के आसपास लगाए गए पौधों के बचने की काफी सम्भावना रहती है।
इस वर्ष को अपवाद स्वरूप ले सकते हैं कि उत्तर भारत में जून के प्रथम सप्ताह में बारिश हुई है वरना हर साल इन दिनों तपती गर्मी रहती है। कितना भी पानी डाला जाय इन एक दो सप्ताह में नए रोप गए पौधों का बचना बहुत मुश्किल होता है। ये तो तब है जब नए पौधों को सुबह शाम पानी दिया जाय। आप लोगों ने देखा ही होगा कि लोग औपचारिकता में पौधा लगाते हैं। फोटो सेशन होता है उसके बाद लगाने वालों को याद भी नहीं रहता है कि उन्होंने पौधा कहां लगाया था। हमारे पूर्वजों ने बहुत सोच समझ कर हरेला पर्व के दिन पौधे लगाने का दिन तय किया था। इस दिन से चार महीने तक भूमि नम रहती है और पौधों के बड़े होने की परिस्थितियां रहती हैं। मदर्स डे, फादर्स डे की तरह क्या विदेशी तर्ज पर पांच जून को पर्यावरण दिवस मनाना जरूरी है। हमें अपने ऋतु क्रम के हिसाब से अपने पर्व तय करने चाहिए। यूरोपीय देशों में इस समय मौसम पौधरोपण के अनुकूल होता है। उत्तर भारत में 20 जून के आसपास वर्षा प्रारम्भ होती है। कुछ दिन की बारिश के बाद जमीन की तपिश कम हो जाती है यह पौधों के लिये अनुकूल हो जाता है। इसके बाद 4-5 महीने भूमि नम रहती है तो पौधे बच सकते हैं।
हम सबको एक संकल्प लेना चाहिये कि साल भर में भले ही एक पौधा लगाएं पर कम से कम 3 साल तक उसकी देखभाल बच्चे की तरह करें।
5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने के इस दिन स्कूली बच्चों के पर्यावरण से सम्बंधित भाषण प्रतियोगिता, पेंटिंग प्रतियोगिता व इसी तरह की अन्य गतिविधियों से जागरूकता बढ़ाने वाले कार्यक्रम रखने चाहिए। पौधरूं कार्यक्रम को थोड़े दिन बाद बरसात शुरू होने पर करना चाहिये।
- लेखक डा. आशुतोष पंत राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं। वे तन-मन-धन से पर्यावरण के प्रति हमेशा सजग रहते हैं और साल में करीब दस हजार पौधे निशुल्क बांटते हैं।