राधा को गांव से शहर आये हुए अभी कुछ ही महीने हुए थे। वह एक अच्छी कॉलोनी में अपने पति सास ससुर और अपने दो बच्चों के साथ किराये पर रहती थी। पति सेना में थे। ससुर प्राथमिक विद्यालय से हेड मास्टर पद से रिटायर थे। उन्हें भी पेंशन मिलती है। पति प्रतिमाह एक निश्चित धनराशि घर खर्च व बच्चों की पढाई के लिए भेजते हंै। बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए पढ़ाई हेतु वह शहर आ गई थी। लेकिन उसका शहर मैं मन नहीं लग रहा था। गाँव में खेतीबारी एवम गायोँ को संभालती थी।
वह इंटर तक ही पढ़ी थी। आसपास के लोगों को अपने घरों तक सीमित देखती तो उसे कोफ्त होती। ऐसा नहीं था कि लोग आपस में बातचीत नही करते। केवल वही सबके लिए अजनबी थी। उससे कोई,बोलता नहीं था। उसका ग्रामीण परिवेश से आना और सादगी देखकर तड़क भड़क पसन्द महिलाएं उससे बात करने से बचती थी। कुछ उसी तरह साधारण परिवार से आई थी। परंतु उन्होंने शहरी तौर तरीके सीख लिए थे। उनके पति कई सरकारी ऑफिस या निजी कंपनियों में नौकरी पर जाते थे। तो उनकी पत्नियाँ घर के अंदर ही अपनी सहेलियों से खाली समय में बतियाती थी। राधा को अकेलापन महसूस होता। गांव में रहते हुए उसे न तो काम की कमी थी ना ही सहेलियों की। पहाड़ के, सारे परिवार ज्यादातर स्वास्थ सुविधाओं, बच्चों की पढाई के नाम पर पलायन कर चुके हैं। उन्हीं में राधा का, परिवार भी एक है। शहर में घर के कामों के अलावा उसके पास कोई काम न था। घरेलू कार्यो में, सास भी मदद कर देती थी।
राधा के जीवन में सहसा एक गाय के कारण परिवर्तन आया। वह गाय अक्सर उसके घर के आगे खड़ी होकर रंभाती। वह कभी कभार उसे रोटी या बचा खाना देती।उसके अलावा भी वह अपनी गली में कुछ गायों व गोवंश को घूमते देखती थी। सुबह गली में कूड़ा गाड़ी आती थी। वह देखती थी कि लोग बचा खाना सब्जी के छिलके सभी कूडे में डालते हैं। जबकि गाँव में ऐसा नहीं था। एक दिन उसने अपने घर के आगे एक पुराना टब रख दिया जिसमें बची रोटी सब्जी के छिलके डालने लगी।
एक दिन झिझकते हुए उसने अपनी पड़ोसन को भी यह सब फेंकने की जगह टब में डालने को कहा। पड़ोसन को प्रस्ताव पसन्द आया । देखते देखते काफी लोग बचा खाना टब मे डालने लगे टब छोटा पड़ने लगा। इस बीच काफी महिलाओं से उसकी जान पहचान भी हो गई। सर्वसम्मति से सीमेंट का टब और हौदी खरीदने पर विचार कर, उसे अमल में लाया गया। सभी ने चंदा करके गायोँ व गोवंश के लिए सीमेंट का टब और हौदीखरीदकर किसी अन्य घर के आगे खाली प्लॉट पर उनकी सहमति से रखवा दिया। अब राधा खुश थी। वह प्रतिदिन गायों को खाना खाते व पानी पीते देखकर असीम संतोष से भर जाती।
इस कार्य से उसके सास ससुर भी खुश थे। मूक पशुओं की, सेवा करने में अपने को धन्य समझने लगी। आखिर उसे खुश रहने का कारण जो मिल गया।
लेखिका उत्तराखंड बाल विकास विभाग की पूर्व बाल विकास अधिकारी हैं। वर्तमान में हल्द्वानी में रहती हैं।