मानव मन की कमियों पर विजय पाने की प्रेरणा देते हैं गणेश के अवतार
कुमाऊं जनसंदेश डेस्क । किसी भी काम की शुरुआत श्री गणेश भगवान की पूजा-अर्चना से ही की जाती है। गणेश भगवान हजारों सालों से देश दुनिया मेें आराध्य के रूप में पूजे जा रहे हैं। वे अलग-अलग देशों में अलग-अलग रूपों व संस्कृतियों के तौर पर आराध्य के रूप मेे पूजे जाते हैं।
गणेश पुराण में गणेश के आठ अवतार बताए गए हैं। ये अवतार प्रतीकात्मक हैं, जिनमें वे मानव मन की मोह, ममता, क्रोध जैसी आठ कमियों पर विजय पाने की प्रेरणा देते हैं। इनमें गणेशजी के मूषक के अलावा शेर, मोर और शेषनाग सहित चार वाहन बताए गए हैं। यानी जमीन, आकाश और पानी तीनों में चलने वाले वाहन।
दुनियाभर में 5000 साल पहले से ही पूजे जा रहे हैं गणेश
गणेश अनादि हैं। इतिहास में भी इसके साक्ष्य हैं। उनकी पूजा के प्रमाण आज से 5000 साल पहले से मिलने लगते हैं। वे अलग-अलग रूपों में विभिन्न संस्कृतियों में हैं। जापान में उन्हें कांगीतेन कहा जाता है। चीन, अफगानिस्तान, ईरान, और मैक्सिको की माया संस्कृति तक में उनकी मूर्तियां मिली हैं। माइथोलॉजी और सिम्बॉलिज्म के विशेषज्ञ लायर्ड स्क्रैन्टन की किताब इंट ऑफ ओरिजनः गोओबलकी टिपे एंड स्पिरिचुयल मैट्रिक्स फॉर द वर्ल्ड कॉस्मोलॉजीश् के अनुसार ईसा पूर्व 3000 में गणेश पूजा का उल्लेख मिलने लगता है। सिंधु घाटी और हड़प्पा सभ्यता में भी गणेश प्रतिमा मिली थी। वहीं ईरान के लोरिस्तान में 1200 साल ईसा पूर्व की गणेश प्रतिमा मिली है।
अफगान में भी गणेशजी प्रतिमा स्थापित की गई थी
राबर्ट ब्राउन की किताब गणेशः स्टडीज ऑफ एन एशियन गॉड के मुताबिक अफगानिस्तान के उत्तरी काबुल में गणेश की एक प्रतिमा चैथी सदी की मिली है। वहीं, पख्तिया प्रांत के गार्देज शहर में एक प्रतिमा 5वीं सदी की पाई गई। संगमरमर की इस मूर्ति पर दर्ज है- ये मनमोहक प्रतिमा महाविनायक की है, जिसे शाही राजा खिंगाल ने स्थापित कराया था। चीन के मोगाओ गुफा में भी गणेश की छठी शताब्दी की पेटिंग मिलती है। यह बौद्ध गुफा है। इसमें बौद्ध धर्म से संबंधित हजारों चित्र हैं। इस गुफा के 25 किमी के दायरे में 492 मंदिर हैं। माना जाता है कि बौद्ध धर्म ने ही यहां गणेश पूजा शुरू की। चीन से ही गणपति जापान भी पहुंचे। यही वजह है कि जापान में 1200 साल पुरानी गणेश प्रतिमा और चित्र मिले हैं।