लेखक चंद्रशेखर जोशी

अबकी बार झुमका नहीं गिरा, बिक्री, उत्पादन सब कुछ गिरा

उत्तराखण्ड कारोबार ताजा खबर देश/विदेश

-बेरोजगारी और कम आय के कारण बाजार में सन्नाटा
-सामान की बिक्री, उत्पादन और रोजगार की कमी से देश के विनिर्माण क्षेत्र की गतिविधियां
निम्नतम स्तर पर
-सभी सूचकांकों के लगातार संकुचन से बिगड़ती जा रही देश की अर्थव्यवस्था
चन्द्रशेखर जोशी
हल्द्वानी। बरेली के बाजार में आशा जी का झुमका गिरा या रुपया, सेंसेक्स, जीडीपी कुछ भी गिरा भक्तों के लिए सब मनोरंजन है।...लेकिन ऐसा नहीं है। सामान की बिक्री, उत्पादन और रोजगार की कमी से देश के विनिर्माण क्षेत्र की गतिविधियां 15 महीने के निम्नतम स्तर पर आ गई हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार आईएचएस मार्केट का इंडिया मैन्यूफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स सूचकांक (पीएमआई) जुलाई में 52.5 से गिरकर अगस्त में 51.4 पर आ गया। यह 12 सालों का सबसे निचला स्तर है। सभी सूचकांकों के लगातार संकुचन से देश की अर्थव्यवस्था बिगड़ती जा रही है।
...बाजार की बिगड़ती स्थितियों के बीच निजी निवेश कम हो गया है। उपभोक्ताओं की मांग में सुस्ती है। बेरोजगारी और कम आय के कारण बाजार में सन्नाटा है। सर्वेक्षण में कहा गया कि प्रतिस्पर्धी दबाव और बाजार में चुनौतीपूर्ण स्थितियों ने बाजार में तेजी को रोकने की कोशिश की।

विदेशों से आने वाले नए कारोबारी ऑर्डर में भयानक गिरावट
अगस्त में विदेशों से आने वाले नए कारोबारी ऑर्डर में भयानक गिरावट आई है। इस तिमाही में भारत का विदेशी निर्यात 18.7 गिर गया है। उत्पादन के क्षेत्र में नया विदेशी निवोश एकदम बंद है। मारुति सुजुकी, हुंदै, महिंद्रा एंड महिंद्रा, टाटा मोटर्स और होंडा वाहन कंपनियों की बिक्री में 30 फीसदी की गिरावट है। अधिसंख्य कंपनियों ने उत्पादन बंद कर दिया है। ...खैर अर्थशास्त्रीय आंकड़े और भी हैं। इनमें उलझना कठिन भी हो तो घर के आंकड़े समझे जाएं। एलपीजी गैस के दाम फिर बढ़ गए हैं। खाद्य पदार्थों के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले तीन महीनों में निजी क्षेत्र से आठ लाख लोगों की छटनी हो चुकी है।
...अर्थशास्त्री थॉमस राबर्ट माल्थस ने कहा था, प्रकृति की मेज सीमित संख्या में अतिथियों के लिए सजाई गई है। जो बिना बुलाए आएंगे, वो भूखे मरेंगे। यही बाजार की क्रूरता है। बाजार के मालिक भांति-भांति के आरोप लगा कर आदमी को मार डालेंगे।
...असल में इस झूठ का सच कुछ और है। धरती पर जन्म लेने वाले व्यक्ति का मुंह भले ही एक हो पर हाथ दो होते हैं। यदि हर हाथ को काम मिले तो न सिर्फ आदमी अपना पेट भर सकते हैं, बल्कि समाज को भी बहुत कुछ दे सकता है।

सरकार ने अब बेरोजगारी के आंकड़े देना बंद किया
...बात सिर्फ रोजगार की भी नहीं है, रोजगार की गुणवत्ता का भी सवाल है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में औपचारिक क्षेत्र में रोजगार की संख्या करीब छह करोड़ है। इसके अलावा करीब डेढ़ करोड़ लोग सरकारी क्षेत्रों में कार्य करते हैं। यानी करीब साढ़े सात करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें औपचारिक तौर पर रोजगार मिला है। कृषि क्षेत्र को छोड़ दें तो करीब 24 करोड़ जैसे-तैसे जीवन जी रहे हैं।
...हाल ही में आई एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बेरोजगारी दर 6.9 फीसद है। यह पिछले 45 वर्षों में सबसे ज्यादा है। सरकार ने अब बेरोजगारी के आंकड़े देना बंद कर दिया है। नई तकनीक कई पेशों को चुपके से खत्म कर रही है। बाजार कुछ घरानों के हाथों में सिमट गया है। उद्योग बंद हो रहे हैं, बैंक कंगाल होने की स्थिति में हैं। हर तरफ की इस गिरावट पर कोई मनोरंजन करे तो करे लेकिन, उस भारत का क्या होगा जिसकी आधी आबादी युवा है..

- लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। वे लगातार जनहित के मुददों पर लिखते रहते हैं।

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