पीएम मोदी के 12 अक्टूबर को आगमन के दौरान 5338 फीट की ऊँचाई पर दी थी तीन हजार कलाकारों ने सामूहिक प्रस्तुति
हल्द्वानी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 12 अक्टूबर को जब आदि कैलाश के दर्शन करने के लिए पिथौरागढ़ जनपद पहुँचे तो उनके सम्मान में तीन हजार से अधिक लोक कलाकारों ने पारम्परिक वेशभूषा और लोक गायन के साथ 5338 फीट (1627 मीटर) की ऊँचाई पर सामूहिक रूप से छोलिया और झोड़ा नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी थी। समुद्र तल से इतनी ऊँचाई और इतनी संख्या में कलाकारों की प्रस्तुति पहली बार दी गई थी। ऐसे में उत्तराखंड के छोलिया और झोड़ा की सामूहिक प्रस्तुति को वल्र्ड बुक आफ रिकार्ड ने दर्ज कर लिया है। साथ ही उत्तराखंड के संस्कृति विभाग को इसका प्रमाण पत्र भी जारी किया गया है। वल्र्ड रिकार्ड में नाम दर्ज होने से राज्य सरकार के साथ ही उत्तराखंड के लोक कलाकार गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।
यह जानकारी देते हुये निदेशक संस्कृति विभाग द्वारा बताया गया है कि सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ में समुद्र तल से 5338 फीट (1627) मीटर की आश्चर्यजनक ऊँचाई पर एक अनोखा और ऐतिहासिक कार्यक्रम संस्कृति विभाग, उत्तराखण्ड द्वारा आयोजित किया गया। उत्तराखण्ड के इतिहास में पहला कार्यक्रम था जिसमें जनपद पिथौरागढ़ के सुदूरवर्ती अंचलों से छोलिया एवं झौड़ा नृत्यक दल के लगभग 3000 लोक कलाकारों द्वारा अपनी पारम्परिक वेश-भूषा एवं लोक गीतों के माध्यम से विश्व का ध्यान उत्तराखण्ड की ऐतिहासिक एवं समृद्धशाली लोक सांस्कृतिक विरासत की ओर आकर्षित किया हिमालय के हृदय सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ में एक असाधारण एवं अभूतपूर्व घटना दुनिया को देखने को मिली।
उन्होंने कहा कि सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ सुदूरवर्ती अंचलों से लगभग 3000 की संख्या में पहुँचे छोलिया एवं झौड़ा नृत्य दलों के लोक कलाकार अपनी पारम्परिक परिधानों एवं आभूषणों से सुसज्जित होकर प्रतिभाग करने पहुँचे तथा इस दौरान लोक गीतों एवं पारम्परिक लोक वाद्यों की धुनों से पूरा पिथौरागढ़ क्षेत्र गुज्यमान हो उठा उत्तराखण्ड की समृद्ध लोक सांस्कृतिक विरासत को देखकर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी भाव विभोर हो गये। जनपद पिथौरागढ़ अपने प्राकृतिक सौंदर्य एवं शान्त वातावरण के लिये ख्यतिलब्ध है। यहाँ हिमालय की ऊँचे-ऊचें हिम शिखर एक सजग पहरी के भाँति अडिग रहते हैं वहीं यह सीमान्त जनपद उत्तराखण्ड की छोलिया एवं झौड़ा लोक नृतक का सबसे बड़ा जमावड़े का केन्द्र रहा। उत्तराखण्ड के पारम्परिक लोक वाद्यों जैसे तुन, रणसिंघा, नागफनी, छोलिया ढाई व तलवार जैसे अन्य लोक वाद्य यन्त्रों ने पूरी घाटी को सुशोभित कर दिया।
उन्होंने कहा कि इस आयोजन का सफल क्रियान्वयन संस्कृति विभाग, उत्तराखण्ड एवं भारत सरकार की दूरदर्शिता और समर्पण का प्रमाण है, इतनी ऊँचाई पर लोक कलाकारों के इस विशाल जमावड़े से उत्तराखण्ड की अनूठी संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता प्रदर्शित होती है।