कूडेदान में गुजर रहा बचपन

…..कब आएंगी बहारें

उत्तराखण्ड ताजा खबर नैनीताल

हल्द्वानी (चंद्रशेखर जोशी)। साल को अलविदा कहना होगा, हर पल को विदाई देनी होगी। नए वर्ष के लिए अच्छी उम्मीदें भी पालनी होंगी। सब कुछ अपने हाथ में नहीं, फिर भी हर पल अच्छा गुजरे इसके प्रयास करने होंगे। कोई बहार आए कि कूड़े के ढेरों में भविष्य तलाशता बचपन न दिखे।
…पेट की भूख सभ्य समाज पर कलंक हैै। कुछ भूखे इंसान सड़कों पर हैं, बांकी घरों में हैं। भारत में दो वर्ष तक की उम्र के 10 प्रतिशत से भी कम बच्चों को पौष्टिक आहार मिल पाता है। किशोर अवस्था में 43 फीसदी बच्चों को उचित भोजन नहीं मिल पाता। इसके बाद की उम्र के युवा अपने कद के अनुरूप वजन नहीं पाते। बचपन ही जब कुपोषण में बीते तो भविष्य सुखद नहीं हो सकता।
… राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार गुजर रहे वर्ष में 2016 की अपेक्षा कुपोषित बच्चों में एक प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 100वें स्थान पर पहुंच चुका है। पिछले साल यह स्थान 97 नंबर पर था। कुछ दिनों पहले झारखंड की संतोषी भात मांगते मरी, हर झोपड़ी में रोज संतोषी जैसों की मौत भूख और कुपोषण से होती है। आंकड़ा यह भी है कि बीमारी से अधिक यहां कुपोषण से मौतें होती हैं।
…देश में पिछले 40 सालों से खाद्यान्न के भंडार भरे हैं। स्टाक इतना अधिक है कि उसके भंडारण की व्यवस्था नहीं हो पाती और अजान सड़ कर नष्ट हो जाता है। अन्न, दूध, सब्जी, मांस-मछली की यहां कोई कमी नहीं। दाम न मिलने से खेतों में सब्जी, बागानों में फलों की बर्बादी आम बात है। खाद्य पदार्थ अगर पर्याप्त मात्रा में लोगों तक पहुंच जाएं तो एक साल की उपज कई सालों तक भुखमरी को खत्म कर सकती है। गोदामों में अनाज सड़ता रहे पर भूख और कुपोषण से जान दे रहे बच्चों को राशन नहीं मिलता।
…बाजार कमाई की ख़ातिर किसी सामान का दाम कम नहीं करता। भंडारों में भरे माल को सस्ता बेच दिया जाए तो दामों में गिरावट और मुनाफे में कमी का जोखिम रहता है। यही कारण है कि रिकार्ड उत्पादन होने के बाद भी बड़ी आबादी भोजन को तरसती है।
…निम्न तबके के लिए अब सरकारी सस्ता राशन वितरण प्रणाली को भी बंद किया जा रहा है। इसे आनलाइन करने के लिए तर्क जो भी दिए जाएं, पर खतरा मुनाफे में हो रही कमी का ही है। कहा जाता है कि डीलर राशन की चोरी करते हैं, यदि इसे मान भी लिया जाए तो डीलर का बेचा राशन बड़े लोग नहीं खरीदते, इसे खरीदता गरीब ही है। अब यह राशन गरीबों की पहुंच में कैसे ही नहीं आएगा। कुछ ही दिनों बाद कुपोषण से मौतें आम होंगी, भूख एक खतरनाक समस्या बनेगी।
…देश में रोज आर्थिक विकास के आंकड़े प्रस्तुत किए जा रहे हैं, जीडीपी का ग्रोथ रेट बढ़ रहा है। दुनिया की ऐजेंसियां यहां की रफ्तार पकड़ती विकास दर को प्रस्तुत कर रही हैं। भारत दुनिया का गुरु और आर्थिक महाशक्ति बनने को तैयार है। इस फर्जीबाड़े के बीच मध्यम परिवारों की नौजवान पीढ़ी के पास जीवन चलाने के लिए रोजगार भी नहीं है।
…औद्योगिक उत्पादन भी बेतहाशा हो चुका है। मिल, उद्योग बंद होने लगे हैं, इससे बेकारी तेजी से बढ़ेगी। शहरों में जीवन बिताने वाले लोग कई कटौतियां कर परिवार को पालेंगे। अगली पीढ़ी का भविष्य सुखद होने की संभावना घटती जाएगी। खेती की लागत उपज बेचने के बाद भी पूरी नहीं आती, अगली फसल के लिए लोन लेना किसानों की मजबूरी बन गई है। नीतियां नहीं बदली तो बेरोजगारी भयानक रूप लेगी। लाख कोशिशों के बाद भी जीवन में बहार लाना बेहद मुश्किल होगा।
..भूख के विरुद्ध, भात के लिए.
.. रात के विरुद्ध, प्रात के लिए.
.. मेहनती, गरीब जात के लिए.
.. हम लड़ेंगे, हमने ली कशम.

140820240458 1 .....कब आएंगी बहारें Independence 16 .....कब आएंगी बहारें Follow us on WhatsApp Channel

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *