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पहाड़ की युवतियां कहती हैं शादी करुंगी तो दिल्ली वाले से

उत्तराखण्ड समाज साक्षात्कार

चम्पा कहती है यहां शादी करके क्या करूंगी। यहां के लड़के करते-धरते तो कुछ नहीं हैं, ऊपर से ज्यादातर लड़के किसी न किसी नशे के लती हैं। अगर कोई काम करता भी है तो यह यकीन करना मुश्किल है कि वह कोई नशा न करता हो-
हरीश रावत/गिरीश चन्दोला 
हल्द्वानी। बदलाव की आबोहवा से पहाड़ भी अछूता नहीं रहा। पहाड़ के जिस शान्त व संयमित जीवन के पहले तर्क दिए जाते थे, वहां आज खामोशी का राज नजर आता है। वहीं की माटी में पलेकृबढ़े युवा खासकर युवतियां पहाड़ की बजाय परदेस (मैदानी क्षेत्रों) में अपने भावी जीवन के सपने देखती हैं।
युवतियों की सोच में आए इस बदलाव को जागरूकता का नाम दें या कुछ और, लेकिन बदलाव की इस बयार ने काफी कुछ बदल कर रख दिया है।
पहाड़ के युवाओं में आए बदलाव को लेकर हमने पहाड़ भ्रमण किया और कई युवाओं खासकर लड़कियों से बातचीत की। हमने अपना सफर सल्ट क्षेत्र से शुरू किया। सल्ट को अल्मोड़ा जनपद की सबसे बड़ी विधानसभा क्षेत्र होने का गौरव हासिल है।
जब हम सल्ट पहुंचे तो शाम होने को थी। सड़क के किनारे शाम के समय सिर पर घास की गठरी लिए लौट रही युवती को जब हमने रोका, तो वह आश्चर्यचकित हो हमें देखते हुए रुक गयी। हमने उससे रोके जाने का कारण बताया, तो पहले तो वह कुछ नहीं बोली, लेकिन हमारे जोर दिए जाने पर उसने बताया कि उसका नाम चम्पा है और वह पास के पोखरी गांव की रहने वाली है।
चम्पा ने बताया कि उसने 12वीं पास किया है और आजकल उसके मां-बाबा उसके लिए सुयोग्य लड़का ढूढने में लगे हैं। जब हमने चम्पा से पूछा कि उसे कैसा लड़का चाहिए? तो वह शरमा गयी। पैर के अंगूठे से जमीन की मिट्टी कुरेदते हुए उसने बताया कि मां-बाबा की आजकल जिस लड़के के साथ शादी की बात चल रही है वह लड़का दिल्ली में किसी फैक्ट्री में काम करता है।
यह पूछे जाने पर कि वह यहीं पहाड़ में शादी क्यों नहीं कर रहे, तो उसने जो उत्तर दिया वह पहाड़ के हालात को बयां करने के लिए काफी था। चम्पा का कहना था कि यहां शादी करके क्या करूंगी। यहां के लड़के करते-धरते तो कुछ नहीं हैं, ऊपर से ज्यादातर लड़के किसी न किसी नशे के लती हैं। अगर कोई काम करता भी है तो यह यकीन करना मुश्किल है कि वह कोई नशा न करता हो।
दूसरे दिन हम साल्दे पहुंचे। सड़क के किनारे एक दुकान में चाय पीने के लिए रुके, तो अपने मायके जा रही एक महिला से मुलाकात हुई। बातों ही बातों में हमने उसे अपने पहाड़ भ्रमण का मकसद बताया। नाम पूछे जाने पर महिला ने बताया कि उसका नाम कविता मठपाल है और वह भाकुड़ा में अपने मायके जा रही है।
कविता ने बताया कि मानिला से बीए पास करने के बाद उसके घर वालों ने उसकी शादी कर दी। उसके पति बैंक में नौकरी करते हैं और पूरा परिवार चंडीगढ़ में सैटल है। कविता से यह पूछे जाने पर कि उन्होंने पहाड़ के किसी लड़के से शादी क्यों नहीं की या फिर उन्हें पहाड़ पसन्द नहीं है?
इस सम्बन्ध में कविता का कहना था कि सच बताऊं तो पहाड़ में ही कई टीचर लड़कों के रिश्ते उनके लिए आए, लेकिन मैंने खुद ही इन रिश्तों के लिए इंकार कर दिया। उसका कहना था कि जिस लड़के का रिश्ता आया था वह बेशक सरकारी नौकरी में था, लेकिन शादी के बाद उसका अधिकांश समय गोबर निकालने या घास काटने में ही व्यतीत होता। मुझे भी वही सब कुछ करना पड़ता, जो आज तक मां-भाभी करते आ रही हैं। फिर पढ़ाई-लिखाई का क्या फायदा। आप खुद ही देखिए अभी भी गांव मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं, कम से कम शहरों में मूलभूत सुविधाएं तो आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं।
इसी बीच कविता की बस आ गयी और वह बस में चढ़ गयी। हमने भी चाय की दुकान वाले से भिक्यासैंण तक के वाहन के बारे में पूछा, तो उसने बताया थोड़ी देर बैठिए, कोई ना कोई जीप मिल ही जाएगी। करीब आधे घण्टे बाद एक जीप मिल गयी और हम उसमें सवार हो गये।
जीप ड्राईवर युवक से बातचीत चली तो उसने बताया उसका नाम चन्दन नेगी है। स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद जब कहीं मन पसन्द का काम नहीं मिला, तो अपनी ही गाड़ी डाल ली और बीते तीन साल से वह इस रूट पर गाड़ी चला रहा है। चन्दन ने बताया उसका घर चैखुटिया में है।
शादी के बारे में पूछने पर उसका कहना था कि दाज्यू यहां की लड़कियां एक जीप वाले से कहां शादी करेंगी, उनकी तो पहली पसन्द ही दिल्ली, मुम्बई में काम करने वाले लड़के हैं। फिर हम जैसे लोग तो गिनती में ही नहीं आते।
हमने पूछा, क्या जिन्दगी भर शादी नहीं करोगे? चन्दन का सपाट सा उत्तर था, नहीं दाज्यू। हमने चन्दन की आंखों में उदासी के भावों को साफ देखा, पर हम कुछ नहीं बोले। कुछ देर चलते रहने के बाद भिक्यासैंण में एक होटल के आगे उतारने के बाद चन्दन चला गया और हम कमरे में पहुंचने के बाद भी काफी देर तक उसके बारे में आपस में बात चीत करते रहे।
अगले दिन सुबह चाय पीने के बाद हम टैक्सी से हल्द्वानी के लिए रवाना हो गए। हमारे बगल की सीट पर एक युवती बैठी हुई थी। बात करने पर उसने बताया कि वह हल्द्वानी में बीए की पढ़ाई कर रही है। उसने अपना नाम सविता मेहरा बताया।
बातों ही बातों में हमने उससे पूछा कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वह पहाड़ में रहकर पहाड़ की तरक्की के लिए काम करना पसन्द करोगी या नहीं ? उसका उत्तर था, अभी कुछ प्लान नहीं किया है। फिर हमने पूछा पहाड़ की अधिकांश युवतियां पहाड़ में शादी करने के बजाय दिल्ली या अन्य शहरों के लड़कों को ज्यादा वरीयता देती हैं ऐसा क्यों? क्या उसके पीछे पहाड़ के महिलाओं की पहाड़ जैसा कठिन जीवन और हाड़तोड़ श्रम है, या भेदभाव या अन्य कारण।
सविता का कहना था कि आज पहले जैसी स्थिति तो नहीं है। हां, पहले की महिलाओं ने जितना कुछ सहा है, वैसी स्थितियां अब नहीं हैं। सविता कहती हैं, जहां तक युवतियों का पहाड़ में शादी न करने का सवाल है, उसके पीछे शायद वे सब कारण हो सकते हैं जिसे उन्होंने अपनी मां को सहते देखा होगा। यही कारण हैं, जिन्होंने उनकी मनोस्थिति में पहाड़ के प्रति बदलाव की भावना को जन्म दिया।
माहवारी के दौरान गौशाला (छानी) में महिलाओं के रहने के बारे में पूछे जाने पर सविता ने कहा, आज कम से कम शहरों-कस्बों के नजदीक रहने वाली महिलाओं को इसमें उतना कुछ नहीं झेलना पड़ता, कुछ हद तक छुआछूत और भेदभाव कम हो रहा है, मगर दूरदराज के गांवों में महिलाओं को माहवारी के दिनों में यूं कहें कि यातना झेलनी पड़ती है।
बातचीत करते-करते कब टैक्सी हल्द्वानी पहुंच गयी, हमें पता ही नहीं चला। हमने भी टैक्सी से अपना सामान उठाया और दिल्ली की बस पकड़ने के लिए बस स्टैंड की ओर चल दिए। बस में बैठे हम बदलाव के बाद पैदा हुई परिस्थितियों का आकलन कर रहे थे, तो हमने पाया कि यदि युवतियों के मन में आने वाले समय में भी बाहरी प्रदेश के लिए मोह कायम रहता है, तो इसका प्रतिकूल असर पहाड़ की सामाजिक व्यवस्था पर पड़ेगा और कई नौजवान युवा न चाहते हुए भी विवाह से वंचित रह जाएंगे।
हालांकि इन सबके बीच एक सच यह भी है कि पहाड़ के युवाओं की एक जमात लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर यहां से विस्थापन रोकने की कोशिश कर रही है, ताकि यहां का जीवन पहाड़ की तरह दुरूह नहीं बल्कि आसान हो और लोग अपनी जड़ों की तरफ मजबूरी में नहीं बल्कि खुश होकर लौटें।
फिर नहीं जरूरत पड़ेगी किसी लड़की को यह कहने की कि उसे शहरी लड़के से शादी करनी है।
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