सफेद बुरांश और भोजपत्र

उत्तराखंड में बुरांश और भोजपत्र का अस्तित्व संकट में

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जीबी राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरण संस्थान जल्द करेगा सर्वे
कुमाऊं जनसन्देश डेस्क
अल्मोड़ा। उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाये जाने वाले सफेद बुरांश और प्राचीनकाल में लेखन ग्रंथों में काम आने वाले भोज पत्र के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। अगर इन्हें संरक्षित करने की दिशा में समय रहते कदम नहीं उठाये गये तो ये दुर्लभ पौधे इतिहास की बात हो जाएंगे। हालांकि जीबी पंत संस्थान के वैज्ञानिकों के बयान के मुताबिक संस्थान के वैज्ञानिक जल्द ही उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सर्वे करेगा और इन दुर्लभ पौधों को बचाने के लिए आवश्यक पहल भी करेगा।
वैज्ञानिकों का मानना है कि कीड़ाजड़ी दोहन के लिए हिमालयी क्षेत्रों में पहुंचे लोग आग जलाने के लिए इन दुर्लभ पेड़ों का उपयोग कर रहे हैं। इससे इनकी संख्या में लगातार कमी देखने को मिल रही हैै। ऐसे में जीबी राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक जल्द ही हिमालयी क्षेत्रों में सर्वे कर वास्तविक रिपोर्ट तैयार करेंगे।
जीबी पंत संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक बहू मूल्य कीड़ाजड़ी का मुख्य स्रोत हिमालयी क्षेत्र हैं। इन्हीं क्षेत्रों में दुर्लभ सफेद बुरांश और भोजपत्र की उपलब्धता है। कीड़ाजड़ी दोहन के लिए लोग कई महीनों तक इन क्षेत्रों में डेरा जमाते हैं और आग जलाने के लिए इन पेड़ों का उपयोग कर रहे हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार, सफेद बुरांश 3600 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मिलने वाला पुष्प है जो औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके फूलों से बना शरबत हृदय रोगियों के लिए लाभकारी माना जाता है। वहीं, भोजपत्र का वृक्ष 4500 मीटर की ऊंचाई पर मिलता है। इसकी छाल सफेद रंग की होती है जिसका प्रयोग प्राचीन काल में ग्रंथों के लेखन में किया जाता था, जिसमें लेखन सालों तक सुरक्षित रहता है।
जीबी पंत संस्थान, अल्मोड़ा के वैज्ञानिक डा. केएस कनवाल के मुताबिक संस्थान की टीम हिमालयी क्षेत्र में जल्द ही सर्वे कर आवश्यक रिपोर्ट तैयार करेगी।

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