हिसार। अगर सलमान खान काला हिरण कांड पांच साल के लिए जेल भेजे गए हैं तो इसमें बहुत बड़ा योगदान बिश्नोई समाज का है। राजस्थान के अलावा हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फैला बिश्नोई समाज अपने आराध्य गुरु जम्भेश्वर जी के बताए 29 नियमों का पालन करते हैं। इनमें से एक नियम वन्य जीवों की रक्षा और वृक्षों की हिफाजत भी है। इसके लिए वो जान भी देने को तैयार रहते हैं। यही कारण है कि जब सलमान खान के हाथों काले हिरणों के शिकार का मामला सामने आया तो वे सड़कों पर आ गए थे।
इस समाज के लोग वृक्षों और वन्य प्राणियों के लिए रियासत काल में भी हुकूमत से लड़ते रहे हैं। वर्ष 1787 में जब जोधपुर रियासत के राजा अभय सिंह ने रियासत में पेड़ काटने का आदेश दिया था तो बिश्नोई समाज के लोग विरोध में आ खड़े हुए थे। उस वक्त ये नारा दिया गया था- सर साठे रूंख रहे तो भी सस्तो जान। इसका मतलब था- अगर सिर कटाकर भी पेड़ बच जाएं तो भी सस्ता है। जब रियासत के लोग पेड़ काटने के लिए आए तो जोधपुर के खेजड़ली और आसपास के लोगों ने विरोध किया। उस वक्त बिश्नोई समाज की अमृता देवी ने पहल की और पेड़ के बदले खुद को पेश किया। इसी कड़ी में बिश्नोई समाज के 363 लोगों ने वृक्षों के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। इनमें 111 महिलाएं थीं। इन्हीं बलिदानियों की याद में हर साल खेजड़ली में मेला आयोजित किया जाता है और लोग अपने पुरखों की कुर्बानी को श्रदा सुमन अर्पित करते हैं।
बिश्नोई समाज के संस्थापक जम्भो जी पंवार राजपूत थे। साल 1487 में जब जबरदस्त सूखा पड़ा तो जम्भो जी ने लोगो की बड़ी सेवा की। उस वक्त बड़ी तादाद में जाट समुदाय के लोगों ने जम्भो जी से प्रेरित होकर बिश्नोई धर्म को अपना लिया। बिश्नोई समाज की व्याख्या इस तरह से भी की जाती है कि जम्भो जी ने कुल 29 जीवन सूत्र बताए थे। बीस और नौ मिलकर बिश्नोई हो गए। रेगिस्तान में वन्य जीवों के प्रति बिश्नोई समाज के लोग अडिग खड़े मिलते हैं और बीच-बीच में हिरणों का शिकार करने वालो से उनका मुकाबला भी होता रहता है। बिश्नोई बहुल गांवों में ऐसे दृश्य भी मिल जाएंगे जब कोई बिश्नोई महिला किसी अनाथ हिरण के बच्चे को अंचल में समेटे स्तनपान कराती नजर आती है।
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