माना की सरकार नई मगर नौकरशाह तो हैं पुराने
विनोद पनेरू, हल्द्वानी। सुना है सरकार मैदानी क्षेत्रों व अन्य प्रदेशों को हो रहेे पलायन को रोकने के लिए आयोग का गठन करने जा रही है। कई विभागों में तो यह प्रक्रिया लागू भी कर दी गई है। पलायन रोकने के लिए सरकार का यह कदम सराहनीय तो है मगर सरकार पहले पलायन रोकने के कारणों का पता लगाएगी उसकेे बाद इस दिशा में कुछ कार्य करेगी यह बड़ी हैरानी की बात है। सवाल यह है कि क्या सरकार को पलायन के कारणों का ही पता नहीं। राज्य बने 17 साल हो गये और राज्य बनाए जाने के उददेश्य से भी सरकार शायद वाकिफ ही होगी। ऐसे में आयोग गठन मात्र एक दिखाया साबित तो नहीं होगा यह चिंतनीय बिंदु है। माना कि हालिया सरकार नई है मगर नौकरशाह तो पुराने ही हैं। ऐसे में इन 17 सालों में सरकारें व नौकरशाह पलायन व बेरोजगारी दूर करने के लिए कितने गंभीर हैं यह तो अनुमान खुद ही लगाया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहने के दौरान उत्तरांचल का समुचित विकास नहीं हो पाता था। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, बिजली, पानी, कच्चे मार्ग सहित अन्य मूलभूत सुविधाएं न मिल पाने की वजह से लोग परेशान रहते थे। इन सब मुददों को लेकर ही लोगों में अलग राज्य बनाने के आंदोलन करने का जोश और जुनून सवार हुआ था। उनका मानना था कि अपना राज्य बनने के बाद गांव-गांव का विकास आसानी से हो सकेगा। क्योंकि नजदीक में सरकार होने से उन्हें दूर लखनऊ की दौड़ लगानी नहीं पड़ेगी। यह भी यकीन था कि हरेक गांव, कस्बे में सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य की सुविधा आसानी से मिल सकेगी। स्कूलों में शिक्षक होंगे। अस्पताल में दवा व डाक्टर, पक्की सड़के, किसानों को फसल का उचित दाम, बेरोजगारों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार के पर्याप्त अवसर मुहैया हो सकेंगे। बेरोजगारी तब भी बड़ी समस्या थी। नजदीक में रोजगार के संसाधन न होने व शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क मार्ग न होने से पलायन हो रहा था। ये कारण लगभग सभी को मालूम ही हैं।
कई आंदोलन के बाद राज्य तो बना। कुछ सुविधाएं भी जरूर मिली। विकास कार्य भी हुए। मगर राज्य बनने के 17 साल बाद भी शिक्षा, चिकित्सा-स्वास्थ्य, रोजगार जो कि मुख्य समस्याएं थी और पलायन का बड़ा कारण थे। ये समस्याएं आज भी जस की तस हैं। नीतियां न बन पाने के कारण पहाड़ों में रोजगार के इंतजाम नहीं हो सके। इस वजह से पूरे राज्य खासकर पर्वतीय क्षेत्रों से लगातार पलायन हो रहा है। गांव खाली हो रहे हैं और बेरोजगार शहरों में धक्के खा रहे हें। अब सरकार कह रही है कि पलायन के कारण पता लगाए जाएंगे उसके बाद रोजगार के अवसर व सुविधाएं उपलब्ध कराए जाएंगे। बकायदा इसके लिए आयोेग का गठन किया जा रहा है। कुछ अधिकारी कर्मचारियों की डयूटी भी इस कार्य मेें लगाई जा रही है। इस कार्य में भी भारी भरकम धनराशि खर्च होनी तय है। इसके बाद भी पलायन रोकने के दिशा में कोई कारगर कदम उठाए जाएंगे या मिशन 2022 तक बेेरोजगारों को यूं ही छला जाएगा यह तो देखने वाली बात है।