लम्बे समय से निमोनिया और बुखार से था पीडि़त
नैनीताल। वह जिंदगीभर नैनी झील से लाशों को निकालता रहा। लावारिस शवों का अंतिम संस्कार, लोगों की मुसीबत में काम आना ही वह अपना कर्तव्य समझता रहा। उसका नाम था हनुमान। वह सबका था, मगर उसका कोई अपना नहीं था।
जज्बे के साथ लोगों की मदद करने और दूसरों के दुख दर्द को अपना समझ मदद करने वाले नैनीताल के हनुमान नहीं रहे। निमोनिया और बुखार से पीडि़त 73 साल के हनुमान की शनिवार सुबह मौत हो गई। हनुमान ने अपने जीवन मेें नैनी झील से सैकड़ों शवोंं को निकालने के साथ ही खुद के खर्च पर तमाम लावारिस शवों का अंतिम संस्कार भी कराया। वे नाम के अनुसार ही दूसरों की मुसीबत के वक्त काम आते रहे। मगर कई कोशिशों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका।
तल्लीताल में रहने वाले हनुमान ने अपने जीवन के काफी साल समाज सेवा को दिए। अपने नाम की तरह वह जीवन भर लोगों को मुसीबतों से उबारने का काम करते रहे। बीमार लोगों का इलाज कराया। बताते हैं कि दूसरों की सेवा करने में वह शादी करना ही भूल गए। जीवन यापन के लिए मूंगफली बेचने से भी परहेज नहीं किया। पिछले दिनों उन्हें निमोनिया व कुछ अन्य बीमारियों ने घेर लिया। इलाज के लिए बीडी पांडेय जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां इलाज के दौरान उन्होंने शर्मिंदगी से बचने के लिए खाना पीना छोड़ दिया। क्योंकि उनका कोई तीमारदार नहीं था। ऐसे में व्यापार मंडल ने उनकी ओर कदम बढ़ाए। बीडी पांडेय जिला अस्पताल में हनुमान का काफी दिन तक इलाज चला। अब वह 73 साल के हो गए थे। शुक्रवार को उन्हें इलाज के लिए हल्द्वानी भेजा गया था। व्यापार मंडल तल्लीताल के अध्यक्ष भुवन लाल साह ने बताया कि हल्द्वानी में इलाज के बाद उनकी तबीयत में काफी सुधार आ गया था, लेकिन शनिवार सुबह अचानक उनकी मौत हो गई।
