logo ओपीएसः तो भाजपा को भारी पड़ी 10 करोड़ सरकारी कर्मियों की नाराजगी

ओपीएसः तो भाजपा को भारी पड़ी 10 करोड़ सरकारी कर्मियों की नाराजगी

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देश के तमाम राज्यों में अहम मुददा रहा है ओल्ड पेंशन स्क्रीम बहाली
कुमाऊं जनसन्देश डेस्क
हल्द्वानी। चार सौ पार का नारा देने वाली भाजपा तीन सौ लोकसभा सीटों के लिए भी तरस गई। राजनैतिक विशेषज्ञों की माने तो भाजपा को पुरानी पेंशन पर कोई ठोस निर्णय न लेना भारी पड़ गया है।
जानकारों की मानें तो लोकसभा चुनाव में 10 करोड़ सरकारी कर्मियों की नाराजगी, भाजपा को तगड़ा झटका दे गई। दूसरी तरफ पुरानी पेंशन पर सॉफ्ट कॉर्नर पॉलिसी रखने वाले इंडिया गठबंधन को सरकारी कर्मियों का समर्थन मिल गया। खासतौर से उत्तर प्रदेश, जिसके नतीजों पर एनडीए और इंडिया गठबंधन की नजरें लगी थी, वहां सरकारी कर्मियों ने भाजपा के हाथ निराशा तो इंडिया गठबंधन को बूस्टर दे दिया। इसके अलावा, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कई दूसरे राज्यों में भी पुरानी पेंशन का मुद्दा अहम रहा है। भले ही केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने सरकार को ओपीएस पर अंतिम निर्णय के लिए वक्त दे दिया था, लेकिन इसके बावजूद कर्मचारियों में नाराजगी रही। जब केंद्र की तरफ से बार-बार यह कहा गया कि पुरानी पेंशन नहीं मिलेगी। एनपीएस में सुधार के लिए कमेटी गठित की गई है। यह बात कर्मियों को अखर गई।

 

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पुरानी पेंशन बहाली के लिए गठित, नेशनल ज्वाइंट काउंसिल ऑफ एक्शन (एनजेसीए) के संयोजक शिव गोपाल मिश्रा ने लोकसभा चुनाव से पहले कहा था कि जो भी दल श्पुरानी पेंशन बहालीश् के मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में शामिल करेगा, उसे कर्मचारी एवं उनसे जुड़े 10 करोड़ वोट मिलेंगे। कांग्रेस पार्टी ने ओपीएस को अपने घोषणा पत्र में प्रत्यक्ष तौर पर शामिल नहीं किया था, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने घोषणा पत्र जारी करते समय कहा था, ये मुद्दा हमारे दिमाग में है। हम इससे पीछे नहीं हट रहे हैं। इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट आने का इंतजार कर रहे हैं। दूसरा, राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान इस मुद्दे पर सॉफ्ट कॉर्नर जारी रखा। उन्होंने ओपीएस के लिए मना नहीं किया। नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) के अध्यक्ष विजय बंधु ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात कर उनसे अपील की थी कि वे पुरानी पेंशन बहाली एवं निजीकरण की समाप्ति के विषय को पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करें। इसके बाद विजय बंधु ने अपने संगठन की मदद से ओपीएस के मुद्दे पर जमकर आवाज बुलंद की।

बता दें कि बंधु ने बुढ़ापे की लाठी ‘पुरानी पेंशन’ की बहाली व निजीकरण की समाप्ति के लिए गत वर्ष लगातार 33 दिन तक 18000 किलोमीटर की ऐतिहासिक यात्रा की थी। बंधु के मुताबिक, ओपीएस पर निकाली गई वह यात्रा, लोगों के स्नेह, सर्मपण व संगठन की ताकत का अद्भुत संगम था। लोकसभा चुनाव में भी वे सोशल मीडिया पर ओपीएस का मुद्दा लगातार उठाते रहे। उन्होंने ट्वीटर पर लिखा, आपकी लोकसभा में कौन जीत रहा है ओपीएस या एनपीएस।

उन्होंने 24 मई को लिखा, उत्तर प्रदेश के 52 लोकसभा क्षेत्रों के अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि एनपीएस हार रही है, ओपीएस जीत रही है। जब तक एनपीएस की विदाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं। रैलियों पर करोड़ों रुपया खर्च करने का पैसा है, रोड शो में कई कुंतल फूलों के लिए पैसा है, चुनाव के समय कई प्लेन लगातार उड़ रहे हैं, उसके लिए पैसा है। बस अर्धसैनिक बलों में पुरानी पेंशन देने के लिए पैसा नहीं है। सेना में स्थाई सैनिक भर्ती के लिए पैसा नहीं है। खाली पदों को भरने के लिए पैसा नहीं है।

 

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