75 एमएलडी के सापेक्ष महज 58 एमएलडी पानी की वर्तमान में हो पा रही शहर में आपूर्ति
विनोद पनेरू, हल्द्वानी। आश्वासन, आश्वासन और महज आश्वासन, आखिर कब तक। क्या राजनैतिक दलों के लिए जमरानी बांध चुनाव जीतने का महज एक मुददा भर रहेगा या यह धरातल पर दिखाई भी देगा। तराई भाबर के लिए बेहद जरूरी गौला नदी में प्रस्तावित जमरानी बांध आखिर कब बन पाएगा, यह सवाल, एक बड़ा सवाल बनकर रह गया है। स्वीकृति और अधिकांश आपत्तियों का निस्तारण होने के बाद भी निर्माण शुरू न होने की वजह समझ से परे है। मगर एक हकीकत यह भी है कि बिना जमरानी बांध बने तराई भाबर की प्यास नहीं बुझाई जा सकती। क्योंकि पर्याप्त पेयजल व सिंचाई के लिए जमरानी बांध ही एकमात्र विकल्प है। प्रदेश सरकार के सकारात्मक कदम से लोगों को उम्मीदें तो हैं। लेकिन संशय भी बना हुआ है। क्योंकि इस परियोजना को स्वीकृत हुए 42 साल हो गये हैं। तब से लोगों को आश्वासन ही दिये जा रहे हैं और धरातल पर प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पा रही है। एक बार फिर जमरानी बांध निर्माण संघर्ष समिति (हल्द्वानी) संयोजक व सामाजिक कार्यकर्ता नवीन चंद्र वर्मा ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद सिंह रावत को ज्ञापन सौंपकर परियोजना के अवरोधों का निस्तारण कर बांध निर्माण शुरू कराने की मांग उठाई है।
बता दें कि लंबे जन आंदोलन के बाद वर्ष 1975 में केंद्रीय जल आयोग से जमरानी बांध परियोजना को मंजूरी मिली थी। तब 61.25 करोड़ रुपये भी परियोजना के लिए स्वीकृत किए गए थे। इसके तहत 1981 में गौला बैराज और 40 किमी लंबी नहरों का निर्माण किया गया, जिसमें 24.59 करोड़ रुपये खर्च हुए। 1984 में परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी का प्रस्ताव भारत सरकार को भेज दिया गया। इसके बाद कई बार पत्राचार के दौर चलते रहे। आज स्वीकृति के 42 वर्ष बीत चुके हैं। बारी-बारी से सत्ता में काबिज भाजपा और कांग्रेस ने चुनावों में जमरानी बांध को भी मुद्दा बनाया पर कोई भी सरकार बांध बनवाने में सफल नहीं हो सकी। यहां बता दें कि प्रति व्यक्ति रोजाना 75 मिलियन लीटर (एमएलडी) पानी की जरूरत होती है। लेकिन गौला नदी व करीब दो दर्जन टयूबवेलों के जरिये कुल मिलाकर औसतन 57 मिलियन लीटर रोजाना (एमएलटी) ही पेयजल की पूर्ति हो पाती है। इस तरह प्रति व्व्यक्ति को रोजाना 28मिलियन लीटर पानी कम मिल पाता है। इसके अलावा हल्द्वानी व इससे सटे गौलापार व अन्य क्षेत्रों में बड़े स्तर पर खेती किसानी की जाती है। लेकिन सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं हो पाता। गर्मियों में गौला का जलस्तर घटने व टयूबवेल मेकं पर्याप्त आपूर्ति न होने के कारण पानी की समस्या विकराल रूप ले लेती है। ऐसे में पेयजल व सिंचाई की पूरी जरूरतों के लिए जमरानी बांध बनना नितांत जरूरी हो गया है। क्योंकि हल्द्वानी व इससे सटे ग्रामीण क्षेत्रों की आबादी लगातार बढ़ रही है। मगर उस अनुपात में पेयजल की उपलब्धता फिलहाल पूरी नहीं हो पा रही है। इधर संघर्ष समिति संयोजक नवीन वर्मा की ओर से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को सौंपे ज्ञापन में कहा गया है कि बांध परियोजना पिछले 42 वर्षो से लटकी पड़ी है। इसका कहीं कोई विरोध भी नहीं है। भाबर क्षेत्र के लिए जमरानी बांध के अतिरिक्त कोइ्र विकल्प भी नहीं है। क्योंकि परियोजना स्वीकृत है और द्वितीय चरण के कार्य जैसे नहरें, सड़कें व आवासीय भवन निर्माण पहले ही पूरे हो चुके हैं। मगर फिर भी बांध नहीं बन पाया है।
जमरानी बांध परियोजना पर एक नजर
प्रस्तावित बांध की ऊंचाई – 130.60 मीटर
बांध के जलाशय की लंबाई – 9 किमी
बांध की चौड़ाई – 1.5 किमी
बांध की जलधारण क्षमता – 208.6 मिलियन घन मीटर
बांध क्षेत्र में आ रही जमीन – 381.43 हेक्टेयर
बांध के डेड स्टोरेज पानी की ऊंचाई – 81 मीटर
बांध से मिलने वाला शुद्ध पेयजल – 52.93 मिलियन घन मीटर
बांध क्षेत्र से बिजली उत्पादन लक्ष्य – 19.5 मेगावाट
बांध के जलाशय से सिंचित होनो वाली भूमि – 57065 हेक्टेयर
सिंचाई के लिए उत्तर प्रदेश को दिया जाने वाला पानी – 52 प्रतिशत
सिंचाई के लिए तराई भाबर को दिया जाने वाला पानी – 48 प्रतिशत
मत्स्य पालन, नौकायन, पर्यटन गतिविधियों का विस्तार भी शामिल