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बचपन को फिर से जिएं, घर बैठे पढ़िए कुमाऊंनी लोरी और बाल गीत, एक क्लिक में डाउनलोड करें ई-बुक

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क्रिएटिव उत्तराखंड संस्था के सदस्यों ने संस्कृति संरक्षण को किया एक और प्रयास
कुमाऊं जनसन्देश डेस्क
हल्द्वानी/रुद्रपुर। उत्तराखंड की संस्कृति का संरक्षण कर उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के उददेश्य से काम कर रही उत्तराखंड क्रिएटिव सांस्कृतिक संस्था ने लाकडाउन का सदुपयोग किया है। नौकरी के चलते पहाड़ से तराई आए रंगकर्मी हेम पंत और उनकी टीम पहाड़ से बाहर बसने के बाद भी पहाड़ की संस्कृति को बखूबी जीती है और उसके संरक्षण के लिए गंभीर प्रयास भी करती रहती है। कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते इन दिनों लाकडाउन चल रहा है और लजोग घरों में ही रहने को मजबूर हैं। मगर ऐसे में उत्तराखंड क्रिएटिव सांस्कृतिक संस्था ने लाकडाउन में ही कुमाऊं लोरियों और बाल गीतों का संग्रह ई-बुक घुघूति-बासूती के रूप में तैयार किया है। इसे बिना खर्च किए एक क्लिक में अपने मोाबाइल, कम्यूटर या लैपटाप में डाउनलोड कर बाद में पढ़ने के लिए संरक्षित किया जा सकता है। साथ ही इस ई- बुक घुघूति-बासूती में लोरियों व बाल गीतों को पढ़ने के बाद फिर से बचपन को जिया जा सकता है।
लोरी व बालगीतों की ई-बुक पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें-

http://TinyURL.com/Ebook-Uttarakhand-ChildrenSong

इस ई-बुक घुघूति-बासूती की खास बात ये भी है कि इस किताब में बच्चों द्वारा तैयार किए सुंदर चित्रों को जगह दी गई है। इससे साफ है कि जिन बच्च्चों ने इन चित्रों को बनाया है उनके मन में संस्कृति संरक्षण के भाव बचपन से ही पनपने लगेंगे और वे भविष्य में भी शब्दों के भावों को चित्रों के रूप में बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर पाएंगे। जैसा कि आप इस किताब को पढ़ने पर पाएंगे कि चाहे संस्कृति की बात हो या कृषि व पशुपालन, बच्चों ने लोरियों व बालगीतों के मुताबिक ही चित्र बनाकर अपनी सोचने समझने की बेहतर क्षमता का परिचय दिया है।
इस ई-बुक घुघूति-बासूती को तैयार करने के लिए लोरियों व बाल गीतों का संकलन रंगकर्मी हेम पंत ने किया है। विनोद सिंह गड़िया ने आकर्षक डिजाइन तैयार किया है। डा. गिरीश चन्द्र शर्मा ने स्केच बनाए हैं और अजय कन्याल ने फोटो में सहयोग किया है। जबकि सुंदर और आकर्षक चित्र वसुधा, वत्सल और मीनाक्षी ने बनाए हैं।
हेम पंत बताते हैं कि नई पीढी को अपनी संस्कृति से जोड़ना जरूरी है। संस्कृति का ज्ञान नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए ही नई तकनीकी का इस्तेमाल कर संस्कृति सरंक्षण का प्रयास किया जा रहा है, जिसे लोगों की काफी सराहना भी मिल रही है।

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