नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट का कहना है कि दंडनीय अपराधों की जांच पेशवर तरीके से होना जरूरी है। ऐसा नहीं होने पर आरोपित गंभीर अपराधों में बरी हो जाते हैं। अपराधियों के बरी होने से न केवल उनका साहस बढ़ता है बल्कि उनकी नजर में कानून का डर भी खत्म हो जाता है। इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति को रोकने के लिये यह बहुत जरूरी है कि जांच पेशेवर तरीके से की जाए।
न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की पीठ ने यह निर्णय एनडीपीएस एक्ट के तहत जेल में बंद बुर्जुग दयावती की अपील पर सुनवाई के बाद दिया।
मामले के अनुसार, जसपुर के अमियावाला गांव निवासी दयावती को गांजा तस्करी के मामले में निचली अदालत ने पांच वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने जांच में कई कमियों के चलते अपील कर्ता को जमानत दे दी। अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने पुलिस जांच पर कहा कि गवाहों के बयानों में विसंगतियां हैं। ट्रायल कोर्ट के समक्ष महत्वपूर्ण साक्ष्य पेश नहीं किये गये और न ही अभियोजन पक्ष की ओर से ही वैधानिक प्रावधानों का पालन किया गया है। दो प्रमुख गवाहों को भी जांच प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया। कोर्ट ने माना कि जांच दोषपूर्ण है और जांच अधिकारी ने अपने कर्तव्यों का सही निर्वहन नहीं किया है।
कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि दंडनीय अपराधों की जांच सही नहीं होने से आरोपित
गंभीर अपराधों में बरी हो जाते हैं। कोर्ट ने कहा कि देश में नशीली दवाओं और पदार्थों की तस्करी एक बड़ी चुनौती है। हाईकोर्ट ने कहा कि यह स्थिति न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि खतरनाक है। अपराधियों के बरी होने से न केवल उनका साहस बढ़ता है बल्कि उनकी नजर में कानून का डर भी खत्म हो जाता है। इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति को रोकने के लिये यह बहुत जरूरी है कि जांच पेशेवर तरीके से की जाए। इसलिए अदालत ने कहा कि पुलिस कार्मिकों के लिये विशेष प्रशिक्षण आयोजित किये जाए कोर्ट ने प्रमुख सचिव गृह और पुलिस महानिदेशक को इसमें पहल करने को कहा हैं साथ ही ऐसे मामलों में उचित कार्रवाई करने को कहा हैं।