नारियल भूसी में तैयार हरी सब्जी

खेत और मिटटी की टेंशन छोड़िये, नारियल की भूसी में उगाइए हरी सब्जी

उत्तराखण्ड ऊधमसिंह नगर ताजा खबर

जैव प्रौद्योगिकी परिषद के वैज्ञानिकों को मिली हाइड्रोपोनिक विधि से सब्जी उत्पादन में सफलता
पंतनगर। अगर आप हरी सब्जियां उगाना चाहते हैं मगर आपके पास खेत या फिर मिटटी भी उपलब्ध नहीं हो पा रही है और पानी की भी कमी है, तो टेंशन छोड़ दीजिए। अब बिना खेत और मिटटी के भी हरी सब्जियां उगाई जा रही हैं। वह भी अधिक पौष्टिक और गुणवत्ता के साथ। नारियल की भूसी को इस कार्य में मुफीद माना जा रहा है। इस विधि में पानी की भी अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती है और छत या घर के किसी भी हिस्से में पर्याप्त सब्जी तैयार की जा सकती है। हल्दी, पंतनगर के जैव प्रौद्योगिकी परिषद के वैज्ञानिकों ने हाइड्रोपोनिक विधि से फसल उत्पादन पर सफलता प्राप्त कर ली है।
उत्तराखण्ड जैव प्रौद्योगिकी परिषद के निदेशक डा. एमके नौटियाल ने बताया कि उत्तराखण्ड के परिवेश व पलायन को रोकने यह विधि कारगर साबित होगी। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में पानी तथा आवश्यक पोषक तत्व खनिज लवण की कमी फसलों का उत्पादन दिन-प्रतिदिन कम हो रहा है, जिससे कृषि आय में कमी आ रही है तथा कृषि पर आधारित पलायन तेजी से निचले शहरों में रोजगार की खोज में हो रहा है।
बताया कि हाइड्रोपोनिक विधि से खेती करने पर आवश्यकतानुसार पोषक तत्व तथा पानी का कम उपयोग होता है तथा सब्जियों की उत्पादन क्षमता में वृद्वि होती है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में इस विधि से खेती करके फसलों की उत्पादन बढ़ाया जायेगा जिससे रोजगार के अवसर पैदा होंगे। बताया कि वर्तमान में उत्तराखण्ड में हाइड्रोपोनिक खेती का अभाव है। जबकि विदेशों में जैसे अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, इजरायल व मास्को में इस खेती से वहां मुद्रा में इजाफा हुआ है जिससे किसानों की आय दिन-प्रतिदिन बढ़ गयी है और उन्नत किस्म की फसलों का उत्पादन हो रहा है।
परिषद के वैज्ञानिक डा. सुमित पुरोहित विभिन्न फसलों के लिए हाइड्रोपोनिक विधि का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि खेती का प्रोत्साहित करने के लिए किसानों व विद्यार्थियों को इसकी उपयोगिता के बारे में जानकारी दी जा रही है।

ऐसे तैयार हो रही बिना मिटटी के सब्जी
पंतनगर। जैविक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उत्तराखण्ड जैव प्रौद्योगिकी परिषद के वैज्ञानिकों ने नारियल की भूसी से मृदारहित खेती करने में सफलता पाई है। परिषद के वैज्ञानिक डा. सुमित पुरोहित ने बताया कि कोकोपिट (नारियल का बाहरी रेशा) का प्रयोग मिट्टी के स्थान पर किया जाता है। कोकोपिट में किसी प्रकार का बैक्टीरिया व फंगस इत्यादि नहीं पाया जाता है। इसके लिए समय-समय पर कोकोपिट में पोषक तत्व एवं अन्य जैविक खाद का उपयोग पानी द्वारा किया जाता है। जिससे उत्पादित होने वाली सब्जियां पोष्टिक व अधिक उत्पादन देने वाली होती हैं। डा. पुरोहित ने बताया कि सब्जियों के उत्पादन के बाद नारियल की भूसी को को बार-बार प्रयोग में ला सकते हैं। इसकी अवधि तीन से पांच साल होती है तथा यह बाजार में बहुत ही कम दाम में उपलब्ध भी हो जाता है। डा. सुमित पुरोहित ने बताया कि मृदा रहित खेती दो प्रकार से की जा सकती है एक हाइड्रोपोनिक व दूसरी एक्वापोनिक। हाइड्रोपोनिक में पानी का उपयोग कम मात्रा में किया जाता है। पानी में विभिन्न प्रकार के न्यूट्रियेन्ट का उपयोग टमाटर, खीरा, पास्ल व लैटस एवं विभिन्न प्रकार की बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है। दूसरी विधि एक्वापोनिक तकनीक में मछलियों का उपयोग किया जाता है। जिस पानी में मछलियां पाली जाती हैं उसी पानी को उपयोग में लाकर पौधे उगाये जाते हैं।

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