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पंतनगर सिडकुल में सुलग रही श्रमिक असंतोष की भयंकर चिंगारी, प्रबंधन को ले डुबेंगी लपटें

उत्तराखण्ड ऊधमसिंह नगर मेरी कलम से

सिडकुल पंतनगर में श्रमिकांें के हालात कुछ ठीक नहीं हैं। काम का बोझ, नौकरी का भरोसा नहीं, शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न की इंतहां। प्रबंधन और श्रम अफसरों की मिलीभगत से श्रम कानूनों की सरेआम धज्जियां। सर्दी, गर्मी में हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी ठेकेदार के आगे तनख्वाह के लिए गिड़गिड़ाना, यही नियति बन गई है सिडकुल में काम करने वाले श्रमिकों की। सिडकुल का श्रमिक गुस्से का तूफान लिये काम तांे कर रहा है मगर जिस दिन श्रमिकों का यह आक्रोश जवाब दे गया तो समझो सिडकुल में श्रमिक असंतोष की ज्वाला सिडकुल और उद्योग प्रबंधन के लिए खासी मुश्किलें खड़ी कर देगी, जिसका शायद ही कंपनी या सिडकुल प्रबंधन अनुमान भी लगा सके।

दिनेश चन्द्र जोशी
दिनेश चन्द्र जोशी

दिनेश चंद्र जोशी
पंतनगर। उत्तराखंड में पंडित नारायण दत्त तिवारी के सत्ता संभालते ही बड़े घरानों को उत्तराखंड में निवेश करने का न्यौता दिया गया। औने पौने दामों में भूमि उपलब्ध करायी गयी। 10 वर्षों के लिए करों में छूट प्रदान की गय, जिसके लालच में बड़े औधौगिक घरानों ने उत्तराखंड के तराई क्षेत्रों में अपने उद्योगों को स्थापित किया। इन उद्योगों ने प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बड़े पैमाने पर बेरोक टोक शुरू ही नहीं किया अपितु सुलभता से शुरुआत में ही प्राप्त हुए बेरोजगार युवाओं का भी मनमाने ढगं से भी भरपूर दोहन किया जो आज भी बदस्तूर जारी है। सिडकुल उधमसिंहनगर की ही बात करें तो लगभग एक लाख 20 हजार युवक यहां पर काम करते हैं। चूकिं अधिकतर उद्योग ठेका मजदूरों से कार्य करवाते हंै इसलिए सही आंकडे कभी भी उपलब्ध नहीं होते। उद्योगों में 70 प्रतिशत उत्तराखंड निवासियों का आंकड़ा सिर्फ कागजों में ही है, धरातल से इसका दू-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। श्रम कानून सिर्फ श्रम कार्यालयों के कागजों में ही रह गए हैं। ये अधिकारियों की मानवीय संवेदनहीनता और धन कमाने की लोलुपता के कारण उद्योगों में नहीं लागू हो पाते। आये दिन किसी न किसी उद्योग के कामगार हाथों में झंडा लिये गले फाड़ते हुए न्याय के लिए श्रम भवन के आगे, सिडकुल के चैराहों, बाजार या उद्योग के आगे दिख जायेंगे। कामगारों की बदहाल और मार्मिक दशा श्रम भवनों के अहाते में न्याय की मांग करते कामगारों के चेहरे पर साफ दिखाई देती हैं। ठेकेदार 30 दिन काम करवाकर 26 दिन की तनख्वाह दे दें तो बहुत बड़ी बात है। नहीं तो 15 – 20 दिन काम करवाकर भगा देते हैं। कामगार तनख्वाह के लिए चक्कर काटता रहेगा, ठेकेदार आजकल आजकल करता रहेगा। न ठेकेदार का कल आयेगा न हार थक कर मजदूर वापस लौटेगा, क्योंकि तनख्वाह से ज्यादा पैसे वाह आने जाने में लुटा चुका होगा। हजारों मजदूरों को ईएसआई, पीएफ, बोनस का ही पता नहीं होता आखिर ये किस चिडिया का नाम है।

महीने दो महीने में खबर आती रहती है कि महिला कामगार को मारकर सिडकुल में फेंक दिया गया है। यौन शोषण, छेड़छाड़ की घटनाएं तो उद्योगों में आम है। पारिवारिक परिस्थिति, नौकरी से निकाले जाने का डर, बदनामी का भय और पैसे वालों की पहुंच मुंह पर ताला लगवा के रखती है। उद्योगों में लगातार कामगारों के अंग भंग हो रहे हैं। कई कामगार कार्य करते समय दुर्घटनाग्रस्त होकर असमय काल के गाल में समा जाते हैं, लेकिन उनके परिजनों को न नौकरी दी जाती है न मानव जीवन के नुकसान की कोई भरपाई की जाती है। लगातार कामगारों पर या उनके प्रतिनिधियों पर उद्योग प्रबंधन द्वारा जानलेवा हमला करवाया जाता है जिसका जीवंत उदाहरण मजदूर प्रतिनिधि एक्टू के केके बोरा और ब्रिटानिया यूनियन अध्यक्ष दिनेश चन्द्र जोशी व हरीश पाठक हैं। उद्योगों में लगातार कामगार अपंग होते जा रहे हैं। चूंकि बाद में वेे उद्योगों के काम के नहीं रहते इसलिए उन्हें निकाल दिया जाता है। ऐसा जान पड़ता है जैसे सिर्फ तीन ही लोगों के लिए ये उद्योग लगाये गए थे जिनमें पहला उद्योग मालिक है। दूसरा प्रबंधन जो वेंडरों, ठेकेदारों, से कमीशन लेता है और मोटी तनख्वाह लेता है। तीसरा श्रम विभाग है जिसके अधिकारियों के तो पौ बारह हो गये हैं। उद्योगों का इनसे कमीशन बंधा रहता है जिस कारण श्रम विभाग के अधिकारी उद्योगों में झांकने तक नहीं जाते। अगर किसी ने किसी नेता का फोन कर दिया या कामगारों ने अत्यधिक दबाव बना दिया तो खानापूर्ति के लिए अधिकारी चक्कर काट आते हैं। उसमें भी उन्हीं का फायदा है आते समय जेब तो गरम हो ही जाती है। उद्योगों से जुड़ा हर तंत्र और उसके अधिकारी के पौ बारह हैं। उसके अलावा कामगारों और प्राकृतिक संसाधनों का सिर्फ दोहन हो रहा है। सरकार को तो टैक्स से मतलब है उसके लिए कोई मरे या जिये या प्रदेश के संसाधन लुटंे, क्या फर्क पड़ता है। बस कागज में आंकड़ों की बाजीगरी ठीक होनी चाहिए।

-लेखक दिनेश चन्द्र जोशी, ब्रिटानिया कर्मकार यूनियन सिडकुल, पंतनगर के अध्यक्ष हैं।

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