chokht अलग अंदाज सेे अजय कर रहे पर्यावरण संरक्षण

अलग अंदाज सेे अजय कर रहे पर्यावरण संरक्षण

नैनीताल
सीमेंट की चौखट  तैयार कर पेड़ों को कटने से बचा रहे
विनोद पनेरू, हल्द्वानी। मकसद एक, चाहे तरीका कोई भी। इसी उददेश्य को लेकर कार्य कर रहे हैं अजय मित्तल। जीविकोपार्जन भी होता रहे और पर्यावरण संरक्षण भी। इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। रुद्रपुर आवास विकास निवासी अजय मित्तल बेशक पौधरोपण तरीके का अभियान नहीं चलाते हों मगर वे अपने काम करने के अलग अंदाज और तरीके से पर्यावरण संरक्षण के भागीदार बन रहे हैं। वे पौधरोपण करने के बजाए इस मुददे को लेकर कार्य कर रहे हैं कि लगाये जा चुके पौधों को कटने से कैसे बचाया जाए। वे अब तक प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हजारों पेड़ों को कटने सब बचा चुके हैं। दरअसल सत्यम डवलपर्स फर्म के स्वामी अजय मिततल सीमेंट की चैखट बनाने का अलग तरीके का काम कर पर्यावरण संरक्षण के भागीदार बन रहे हैं।
 हर आदमी का सपना होता है कि उसका अपना घर हो। हर साल हजारों नए घर बनने के अलावा पुरानों की मरम्मत होती रहती है। इनकी चैखट आदि बनाने में लकड़ी की ही जरूरत होती है। ऐसे में चैखट, दरवाजे, खिड़की बनाने की खातिर ही हर साल हजारों पेड़ों को काटा जाता है। एग्रीकल्चर से बीएससी और उसके बाद माार्केटिंग से एमबीए करने वाले अजय मित्तल करीब छह साल पहले घूमने दक्षिण भारत क्षेत्रा में गए हुए थे। तब उन्होंने देखा कि यहां की अपेक्षा उस क्षेत्रा में हरियाली अधिक है। साथ ही लोग लकड़ी की चैखट के बजाए सीमेंट की चैखट का इस्तेमाल करते हैं। यहीं से अजय को भी आयडिया सूझा। वे कुछ अलग तरीका काम काम करने के साथ ही पर्यावरण की दिशा में भी काम करना चाहते थे। वहीं लोग भी बरसात के सीजन में लकड़ी की चैखटों के सड़ने-गलने व दीमक लगने से परेशान थे। पर्यावरण संरक्षण के साथ ही आजीविका भी चलती रहे इससे अच्छा काम क्या हो सकता है। इसी मकसद को मंजिल तक पहुंचाने के लिए उन्होंने इंजीनियरों की राय व तकनीकी का प्रयोग कर सीमेंट की चैखट व सीमेंट के ईंट ब्लाॅक बनाने का काम शुरू कर दिया।
अजय आज एक सफल कारोबारी तो बन ही चुके हैं। साथ ही दावा करते हैं कि वे अपने अलग तरीके के काम से हजारों पेड़ों को कटने से बचा चुके हैं। वहीं लोगों को भी दीमकरोधी सीमेंट की चैखटें काफी पसंद आ रही हैं। अजय का कहना है कि उनका मकसद भी पर्यावरण संरक्षण में भागीदार बनना है चाहे तरीका कोई भी हो। हम पौधें लगाएं या लगे पौधें बचाएं। बस हरियाली बढ़नी चाहिए।

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